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रहस्य-रोमांच >> मेलूहा के मृत्युंजय

मेलूहा के मृत्युंजय

अमीश

प्रकाशक : वेस्टलेण्ड लिमिटेड प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :472
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8637
आईएसबीएन :9789380658827

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The Immortals of Meluha का हिन्दी अनुवाद, शिव पर रचना-त्रय की प्रथम पुस्तक

Meluha ke Mrityunjay by Ameesh

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

1900 ईसवी पूर्व, जिसे आधुनिक भारतीय सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से कह जाने की गलती कर बैठते हैं।
उस समय के निवासी उस भूमि को मेलूहा के नाम से पुकारते थे - इस साम्राज्य की स्थापना भारत के सबसे महान् सम्राट प्रभु श्रीराम ने कई शताब्दियों पूर्व की थी।
एक समय गर्वशील रहे इस साम्राज्य एवं इसके सूर्यवंशी शासकों ने कई संकटों का सामना किया था क्योंकि उनकी प्राथमिक नदी पवित्र सरस्वती शनैः-शनैः सूखती हुई मृतप्राय होती जा रही है। पूर्व दिशा से अर्थात् चन्द्रवंशियों के साम्राज्य की ओर से वे अत्यंत ही विध्वंसक आतंकवादी आक्रमणों का सामना कर रहे हैं। चकित कर देने वाली एवं दुःखदायी बात यह प्रतीत होती है कि चन्द्रवंशियों ने उन नागाओं से समझौता कर लिया है जो मानव जाति में जाति बहिष्कृत एवं अशुभ जाति थी, किन्तु उनके पास अद्भुत युद्ध कौशल है।

सूर्यवंशियों की आस मात्र एक पौराणिक गाथा पर टिकी है - ‘जब बुराई एक महाकाय रूप धारण कर लेती है, जब ऐसा प्रतीत होता है कि सब कुछ लुप्त हो चुका है कि आपके शत्रु विजय प्राप्त कर लेंगे, तब एक महानायक अवतरित होगा।’

क्या वह रूखा एवं खुरदुरा तिब्बती प्रवासी शिव सचमुच ही महानायक है?

और क्या वह महानायक बनना भी चाहता है अथवा नहीं?

अपने प्रारब्ध एवं कर्त्तव्य की ओर खिंच जाने वाले एवं साथ ही प्रेम से प्रेरित शिव क्या सूर्यवंशियों के प्रतिशोध में उनका नेतृत्व करेंगे और बुराइयों का नाश करेंगे?

यह शिव पर रचना-त्रय की प्रथम पुस्तक है। शिव एक साधारण मनुष्य है जिसके कर्म उसे देवों के देव महादेव में परिवर्तित कर देते हैं।


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